Sunday, July 27, 2008

UPA सरकार का विश्वास प्रस्ताव

UPA सरकार का विश्वास प्रस्ताव

२२ जुलाई २००८ को भारतीय संसद में UPA सरकार द्वारा प्रस्तुत विश्वास प्रस्ताव भारतीय लोकतन्त्र के इतिहास में एक पीड़ादाई स्मृति के रूप मे अंकित हो गया है। इस सम्पूर्ण प्रकरण के कई महत्वपूर्ण पक्ष हैं। हम जानते हैं कि Left Front द्वारा समर्थन हटा लेने के कारण सरकार को यह विश्वास मत लाना पड़ा किन्तु सत्ता पक्ष की ओर् से बोलने वाले सभी वक्ताओं ने अपनी आलोचना का केन्द्रबिन्दु बनाया भारतीय जनता पार्टी को। तीसरे मोर्चे ने प्रधानमन्त्री के लिये मायावती जी का नाम उछाला किन्तु कटाक्ष किये गये श्री आडवाणी जी के प्रधानमन्त्री बनने की सम्भावनाओं पर। विपक्ष के नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी जी द्वारा अपने वक्तव्य के माध्यम से सरकार से पूछे गये प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं दिया गया अपितु निरर्थक व घिसे-पिटे बाबरी मस्जिद विध्वंस सरीखे वाक्य दोहराए गये। भारत अमेरीका 123 Agreement से सम्बन्धित प्रश्नों का उत्तर न देते हुए निर्लज्जता पूर्वक Hyde Act से इसके सम्बन्ध को नकारा गया। सदन के अध्यक्ष श्री सोमनाथ का व्यवहार पूर्णत: भारतीय जनता पार्टी के विरोध में रहा। ३ सांसदों द्वारा उन्हें १-१ करोड़ रुपया दिये जाने के रहस्योद्घटन के पश्चात भी अध्यक्ष जी ने इस प्रकरण की जांच किये बिना मतदान कराया।देश के समाचार माध्यमों की भूमिका अनुचित रूप से सरकार के पक्ष में रही। समाचारों की प्रस्तुति से चर्चा- समीक्षा आदि में 123 Agreement को देशहित में स्थापित करने का कुत्सित प्रयास किया गया। विपक्ष की आपत्तियों के समाधान की चेष्टा तक नहीं की गयी। UPA सरकार विश्वास मत अवश्य जीती है परन्तु लोकतन्त्र की, नैतिकता की, मूल्यों की लज्जाजनक हार हुई है और इस हार के सबसे बड़े उत्तरदायी हैं समाचार माध्यम
. Dr. जय प्रकाश गुप्त
chikitsak@rediffmail.com

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